Wednesday 16 January 2013

जरा सोचिए !हम नेताओं और अधिकारियों पर भ्रष्टाचार में लिप्त होने व घूस लेने का आरोप प्रतिदिन चिल्ला-चिल्लाकर लगाते हैं। अपने काम के प्रति ईमानदार होने का रोना रोते हैं। लेकिन अधिकारियों और नेताओं को छोड़कर क्या बाकी सब ईमानदार है? उदाहरण के तौर पर जब आप किसी दूसरे शहर जाते हैं, किसी काम से। विशेष तौर पर जब नवयुवक नौकरी की परीक्षा देने जाते हैं तो मनमानी वसूली हर कदम पर की जाती है। उसकी शुरुआत रिक्शेवाले से होती है और परीक्षा संपन्न होने तक जारी रहती है। यदि किराया दस रुपये है तो उस दिन पच्चीस या तीस रुपये हो जाता है। वह बड़ी ही बेशर्मी से कहता है:-बाबू आज ही तो कमाई का दिन है, कल से फिर सन्नाटा। यही हाल फल और नाश्ता बेचने वालों का होता है। कुल मिलाकर मजबूरी का फायदा उठाने में हिन्दुस्तान का कोई जोड़ा नहीं। फिर हम दूसरे से ईमानदारी की अपेक्षा क्यों करते हैं? जब किसी का दस रुपये के लिए ईमान डोल सकता है तो करोड़ों पर?????लेकिन इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि भ्रष्ट नेता व अधिकारी सही कर रहे हैं। पर कहीं न कहीं इसको बढ़ावा देने के लिए हम सभी जिम्मेदार हैं। 'भगत सिंहÓ पड़ोसी के घर पैदा हो और हमे ऐसे ही भ्रष्टाचार से मुक्ति मिल जाए, इस धारणा को बदलने की जरूरत हैं।जय हिन्द

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